बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
5. कथा
प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
अथवा
कथा के प्रकार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
'कथा' या 'कथावस्तु' नाटक का एक कविकल्पित शरीर है। धनंजय ने दशरूपक के प्रथम प्रकाश के अन्त में रूपक को "नेतृरसानुगुण्या कथा" कहकर सम्बोधित किया है। रस प्रधान है, रस और नायक के अनुकूल ही कथा की रचना की जाती है। रूपककार अपने रूपक के लिए कथा या तो रामायण- महाभारत और इतिहास प्रसिद्ध ग्रन्थों से ग्रहण करता है या कल्पना का आश्रय लेकर कल्पित कथा की रचना करता है। नाट्य तथा अभिनय के ज्ञाता इसे इतिवृत्त भी कहते हैं। नायकादि का चरित्र- वर्णन भी इतिवृत्त कहा जाता है।
नाटक में वर्णित कथानक 'वस्तु' अर्थात् 'कथावस्तु' कही जाती है। इस कथावस्तु का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। नाटक में लोक की अवस्थाओं का अनुकरण किया जाता है। ये अवस्थायें भिन्न- भिन्न प्रकार की होती हैं परन्तु सबसे अधिक हमारी दृष्टि सुखात्मक और दुःखात्मक रूपों पर पड़ती है। नाटक में इन दोनों अवस्थाओं का समान महत्त्व है और इनका चित्रण किया जाता है। रूपकों का प्रथम भेदक धर्म 'वस्तु' ही है। इस वस्तु के ही कथावस्तु इतिवृत्त, प्लाट (Plot) आदि नाम हैं। साहित्य के लक्षण ग्रन्थों में वस्तु दो प्रकार की निर्दिष्ट की गई है— वस्तु च द्विधा (दशरूपक - प्रथम प्रकाश )
नाटक के संघटक तत्त्वों के निरूपण के सन्दर्भ में धनंजय स्पष्ट रूप से कहते हैं कि-
वस्तुनेता रसस्तेषां भेदक:-
तत्राधिकारिकं मुख्यमङ्गं प्रासङ्गिकं विदुः ॥ -(दशरूपक - 1/11)
कथावस्तु के प्रकार - वस्तु ( कथावस्तु), नेता (नायक) एवं रस- ये तीन नाटक के प्रमुख भेदक तत्त्व हैं। कथावस्तु का सम्बन्ध पात्रों और दर्शकों से होता है इसलिए कथावस्तु का वर्गीकरण भी पात्र और दर्शक की दृष्टि से भी सम्भव हो सकता है। कथावस्तु दो प्रकार की होती है— मुख्य कथा और प्रासंगिक कथा। मुख्य कथा को ही आधिकारिक कथावस्तु कहा जाता है। सहायक कथा प्रासंगिक कथावस्तु कही जाती है।
आधिकारिक कथावस्तु — प्रधानभूत कथा को 'आधिकारिक कथावस्तु' कहते हैं। नाटक के फल पर स्वामित्व प्राप्त करना अधिकार कहलाता है तथा उस फल के स्वामी को अधिकारी कहा जाता है। नाटक का फल ही अधिकार है और उस फल का भोक्ता अर्थात् नायक अधिकारी कहलाता है। अधिकार उसे कहते हैं जहाँ फल के साथ स्वस्वामिभाव सम्बन्ध हो। फल का स्वामी ही अधिकारी कहलाता है। उस अधिकार या अधिकारी के द्वारा निवृत्त या फल प्राप्ति तक ले जाया गया इतिवृत्त ही आधिकारिक इतिवृत्त होता है। यह नाटकादि रूपकों में मुख्य कथावस्तु होती है। यह नाटक के प्रारम्भ से चल कर अन्त तक जाती है। इसका फल भोक्ता नायक होता है।
कहने का तात्पर्य यह है नायक का फल के साथ स्वस्वामिभाव सम्बन्ध नामक अधिकार होता है और फल का वह ही स्वामी होता है। उसी कथा को फल प्राप्ति तक ले जाने वाली कथा आधिकारिक कथा कहलाती है।
अधिकार: फलस्वाम्यमधिकारी च तत्प्रभुः।
तन्निर्वृत्तमभिव्यापि वृत्तं स्यादाधिकारिकम् ॥ -(दशरूपक - 1/12)
प्रासंगिक कथावस्तु – जो कथावस्तु या इतिवृत्त दूसरे अर्थात् मुख्य कथावस्तु के लिए निर्मित होता है किन्तु प्रसंगवश जिसका अपना प्रयोजन भी सिद्ध हो जाता है वह प्रासंगिक कथावस्तु कहलाती है-
प्रासंगिक परार्थस्य स्वार्थों यस्य प्रसङ्गतः।
सानुबन्धं पताकाख्यं प्रकरी च प्रदेशभाक् ॥ -(दशरूपक - 1/13)
जो कथावस्तु दूसरे अर्थात् आधिकारिक कथावस्तु के प्रयोजन की सिद्धि के लिए होती है किन्तु प्रसंगवश वह अपने प्रयोजन को भी सिद्ध करती है, वह प्रासंगिक इतिवृत्त कहलाता है। प्रासंगिक कथावस्तु मुख्य कथावस्तु अर्थात् आधिकारिक कथावस्तु के फल प्राप्ति तक पहुँचाने में सहायक का कार्य करती है। प्रासंगिक कथावस्तु से तात्पर्य है - प्रसंगवश निष्पन्न होने वाली कथावस्तु, जैसे- रामायण में सुग्रीव की कथा। प्रासंगिक कथावस्तु दो प्रकार की होती है-पताका एवं प्रकरी।
पताका - "सानुबन्धं पताकाख्यम्" जो कथा रूपक में अधिकारिक कथा के समानान्तर दूर तक चलती है, वह सानुबन्ध होती है, उसे पताका कहा जाता है। इस पताका कथावस्तु का नायक भी अलग होता है जो आधिकारिक कथावस्तु का सहायक होता है। यह मुख्यनायक से गुणों में भी न्यून होता है, जैसे- रामायण में सुग्रीव की कथा में सुग्रीव।
प्रकरी - " प्रकरी च प्रदेशभाक् " जो कथावस्तु अल्पकाल के लिए आधिकारिक कथा के साथ चलती है वह प्रकरी कहलाती है, जैसे- रामायण में श्रवरी (शबरी) की कथा। प्रकरी कथा में नायक का कोई अपना स्वार्थ नहीं होता। अनुबन्धहीन होने से यह कथा थोड़ी दूर ही चलती है। इस प्रकार की कथा का अपना कोई प्रयोजन नहीं होता है। यह प्रमुख नायक के चरित्र की उत्कर्षता को अभिव्यक्त करती है। यह प्रधान कथा की उपकारिका है, जैसे- जटायु की कथा - यह कथा सीता के विषय में किंचित् जानकारी देती है, जिससे प्रधान कथा का उपकार हो जाता है।?
इस प्रकार ये दोनों पताका और प्रकरी कथायें आधिकारिक कथावस्तु को गतिशील बनाने में अपना योगदान देती हैं। इस प्रकार कथावस्तु के तीन प्रकार हैं- आधिकारिक, पताका एवं प्रकरी। पुनः ये तीनों भेद - प्रख्यात, उत्पाद्य और मिश्र से तीन-तीन होते हैं-
प्रख्यातोत्पाद्यमिश्रत्वभेदात्त्रेधापि तत्त्रिधा।
प्रख्यातमितिहासादेरुत्पाद्यं कविकल्पितम् ॥ -(दशरूपक - 1/15)
प्रख्यात - जो कथावस्तु ऐतिहासिक होती है वह प्रख्यात कहलाती है, जैसे- मुद्राराक्षस की कथावस्तु। उत्पाद्य – जो इतिवृत्त उत्पाद्य होता है अर्थात् नाट्यकार अपनी कल्पना को ग्रहण कर रूपक की रचना करता है वह उत्पाद्य है।
मिश्र - जिसमें कुछ अंश इतिहास का और कुछ अंश कवि - कल्पना से मिश्रित हो वह कथावस्तु मिश्र कथावस्तु कहलाती है, जैसे- अभिज्ञानशाकुन्तलम्। उपर्युक्त वर्णित कथावस्तु दिव्य, मर्त्य तथा दिव्यादिव्य भेद से अनेक प्रकार की होती हैं।
दिव्य - जिस नाटक में नायक देवता होता हैं वह दिव्य कथावस्तु होती है, जैसे- श्रीकृष्ण। दिव्यादिव्य-दिव्यादिव्य में नायक देवतावतारी मनुष्य होता है, जैसे- श्रीराम।
मर्त्य — मानव रूप में जो पात्र नाटक रूप में वर्णित होता है वह मर्त्य कोटि की कथावस्तु है, जैसे - दुष्यन्तादि।
कथानक की स्थितियाँ - रूपक के समस्त इतिवृत्त या कथानक को तीन स्थितियों में बाँटा गया है। इन्हें 'अर्थ प्रकृति', 'अवस्था' एवं 'सन्धि' कहा जाता है। इनके भी अनेक उपभेद हैं-
कथानक की स्थितियाँ
अर्थ प्रकृति | अवस्था | सन्धि |
1. बीज | आरम्भ | मुख |
2. बिन्दु | यत्न | प्रतिमुख |
3. पताका | प्राप्त्याशा | गर्भ |
4. प्रकरी | मियताप्ति | विमर्श |
5. कार्य | फलागम | अवमर्श (उपसंहार) |
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
- प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
- प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
- प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?